Water Fall model in hindi

Water Fall Model

Water Fall Model को हम Classical Waterfall Model या linear – sequential Model भी कहते है |
Water Fall Model , SDLC (सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल ) का एक basic मॉडल है|
Waterfall मॉडल को प्रयोग करना और समझना बहुत आसान है | Waterfall Model का प्रयोग छोटे प्रोजेक्ट मे किया जाता है | इस मॉडल के शुरुआत मे ये मॉडल काफी popular हुआ लेकिन अब इस मॉडल का प्रयोग नहीं किया जाता है | लेकिन फिर भी ये मॉडल बहुत ही मह्त्वपूर्ण है क्योकि आज के समय मे हमारे पास SDLC (सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट लाइफ साइकिल ) के जो मॉडल उपलब्ध है वो सारे मॉडल water fall Model पे आधारित ( based ) है | वॉटरफॉल मॉडल मे phases को ओवरलैप नहीं किया जा सकता है |

water fall Model का जो अर्थ है वो इसी शब्द मे छिपा है अर्थात जब किसी water fall से जब पानी निचे की ओर गिरता है तो वो पानी बस एक ही दिशा मे आगे की ओर गिरता है ठीक उसी प्रकार
जब हम Water Fall Model पे किसी सॉफ्टवेयर को डेवलपमेंट करते है तो एक एक कर के उसके phases को पूरा करते है जब तक हम एक फेज को पूरा नहीं कर देते तब तक हम दूसरे फेज को शुरू नहीं कर सकते |

  1. Feasibility Study
  2. Requirement analysis
  3. Design
  4. Implementation
  5. Verification
  6. Maintenance

1. Feasibility Study

जब किसी organisation मे कोई भी प्रोजेक्ट / सॉफ्टवेयर बनने के लिए आता है तो हमको पहले Feasibility Study करनी पड़ती है | Feasibility Study मे हम ये देख़ते है की जो प्रोजेक्ट हम करने जा रहे वो प्रोजेक्ट करने लायक है की नहीं | Feasibility Study मतलब जिस प्रोजेक्ट को हम करेंगे उससे हमे क्या फायदा या नुकसान होगा | ओर सॉफ्टवेयर / प्रोजेक्ट market मे आने के बाद कहीं gov . इसे बेन न कर दे| Feasibility स्टडी मे ऐसी बेसिक चीजों को study किया जाता है |

2. Requirement analysis

Requirements phase मे हम यह देख़ते है की जो प्रोजेक्ट को तैयार करना है उसके लिए क्या क्या requirements है मतलब की प्रोजेक्ट मे किस लैंग्वेज का प्रयोग किया जायेगा प्रोजेक्ट network base है या फिर web base है कितना टाइम लगेगा प्रोजेक्ट को पूरा करने मे | प्रोजेक्ट के लिए सिस्टम की क्या requirements होंगी | ऐसी सारी requirements को एकत्रित तथा documented किया जाता है।

3. Design

इस फेज मे एक blue print तैयार किया जाता है जिसमे की  DFD ( data flow digram) , ERD ( ER digram ) , फ्लो चार्ट , डेटाबेस को डिज़ाइन किया जाता है | जिससे की प्रोजेक्ट बनाने मे कोई दिक्कत न आये और अगर कोई प्रॉब्लम आती ह तो उसे आसानी से solve कर सके |

4. Implementation

इस फेज मे हम real hardware पे काम करते है तथा साथ ही साथ डेटाबेस को भी implement भी किया जाता है | project / software की  coding, testing, की जाती है  | ये सबसे लम्बी चलने वाली प्रोसेस है |

5. Verification

इस फेज मे सॉफ्टवेयर को verify करने के लिए भेजा जाता है | इस फेज मे अलग अलग प्रकार की टेस्टिंग की जाती है | जिससे की यह देखा जाता है की सॉफ्टवेयर मे कोई ख़राबी तो नहीं है | तथा यह देखा जाता है की client की जो Requirement थी वो Requirement हमारा सॉफ्टवेयर फुलफिल करता है या नहीं

6. Maintenance

इस फेज मे हम तैयार प्रोजेक्ट / सॉफ्टवेयर को client को दे देते है तथा क्लाइंट उसका उपयोग करना शुरू कर देता है अगर सॉफ्टवेयर मे कोई दिकक्त आती है तो उसे टाइम पे ही solve किया जाता है |

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